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आधे-अधूरे मिसरे

अधूरे मिसरे

वक्त को आते न जाते न गुजरते देखा ।
जब भी तेरे दामन में खुद को बिखरते देखा।

 इश्क में रंगत निखरना कोई नई बात नहीं ,
हमने तो आँसुओं से चेहरा निखरते देखा।

 पहरों मेरी आँखों में झाँकती रहती है वो,
 आईने के बिना भी हुस्न को सँवरते देखा।

लम्हों की ख़ता सदियों पर पड़ी है भारी,
मासूमों को दोजखों में आहें भरते देखा।

नफरतों का बीज ऐसा बो दिया है उसने,
बागवान को ही रिश्तों का खूँ करते देखा।

मनचलों की भीड़ में वफ़ा कहाँ मिलेगी,
तुमने घड़ी भर भी इन्हें कब ठहरते देखा।

जिस भिखारी को एक सिक्का दिया था प्रीति,
 उसे दुआओं से मैंने घर भरते देखा।

प्रीति चौधरी"मनोरमा"
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश
मौलिक एवं अप्रकाशित।

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3 Comments

बेहतरीन अभिव्यक्ति और खूबसूरत भाव

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Alka jain

15-Jul-2023 11:26 AM

Nice 👍🏼

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